कीतने सागर की गहेराईया,तेरी आंखो में रही । किनारे बेठने के बावजूद,मेरी आंखे खुंपती रही ।।
-अशोक वावडीया,《रोचक》♥
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો