મંગળવાર, 18 ડિસેમ્બર, 2012

नजरो का खेल !!!

कीतने सागर की गहेराईया,तेरी आंखो में रही  ।
किनारे बेठने के बावजूद,मेरी आंखे खुंपती रही ।।

-अशोक वावडीया,《रोचक》♥

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